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जाटोली के ऐतिहासिक धरोहर की गुहार: एम एल ए वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय को सरकार के संरक्षण में देने की मांग

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जाटोली मंडी पंचायत की मांग: एम एल ए वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय को सरकार को सौंपा जाए पटौदी विधानसभा क्षेत्र के ऐतिहासिक गांव जाटोली में स्थित सैकड़ों वर्षों पुराने एम एल ए वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, जो महान संत प्रेमानंद जी महाराज द्वारा स्थापित किया गया था, को लेकर एक महत्त्वपूर्ण पंचायत का आयोजन किया गया। यह विद्यालय विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसे ग्रामीणों द्वारा शिक्षा के उद्देश्य से संत प्रेमानंद जी को जमीन दान में दी गई थी। यह ऐतिहासिक संस्था स्थानीय लोगों के लिए केवल एक विद्यालय नहीं, बल्कि एक भावनात्मक धरोहर है, जिससे हजारों की संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। इस विद्यालय से पढ़कर कई विद्यार्थी बड़े अधिकारी बने हैं और दुनिया के कोने-कोने में अपने गांव और विद्यालय का नाम रोशन कर रहे हैं। पृथ्वीराज चौहान भवन, खंडेवला मोड़, जाटोली में पूर्व नगरपालिका प्रधान श्री जगदीश सिंह की अध्यक्षता में हुई इस पंचायत में विद्यालय के अचानक बंद होने पर गहरी चिंता जताई गई। मार्च सत्र से ही विद्यालय के प्रबंधन ने इसे बंद कर दिया और बचे हुए विद्यार्थियों को यह कहकर स्कूल से हट...

"इस्लाम और सनातन के संघर्ष में दोनों की पराजय अपरिहार्य है"

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धीरज शर्मा, पटौदी आज हमें सोचने पर मजबूर करती है। एक तरफ़ जानवरों की बलि को धर्म की आस्था से जोड़ा जाता है, तो दूसरी ओर पटाखों के शोर और धुएं में त्योहार की खुशी तलाशी जाती है। नतीजा? बेजुबान जानवरों का खून और प्रदूषित आसमान।यह इस्लाम और सनातन की लड़ाई, जिसमें दोनों की हार निश्चित है, ईद पर लोग क़ुर्बानी करते हैं, "अल्लाह की रज़ा" का हवाला देकर सड़कों पर खून बहाते हैं, जबकि दिवाली पर पटाखों से वातावरण को धुएं और शोर में बदल दिया जाता है। कोई इसे धार्मिक परंपरा कहता है, तो कोई आस्था। लेकिन इन सबके बीच कहीं न कहीं हम इंसानियत और प्रकृति को भूलते जा रहे हैं। यह लड़ाई धर्म की नहीं, बल्कि इंसानियत की हार है। एक धर्म जानवरों के प्रति संवेदनहीन है तो दूसरा पर्यावरण के प्रति। दोनों अपने-अपने परंपराओं की दुहाई देकर प्रकृति और समाज को क्षति पहुंचा रहे हैं। सवाल यह है कि क्या धर्म का मतलब वाकई प्रकृति और निरीह प्राणियों की उपेक्षा करना है? असल मुद्दा यह नहीं है कि कौन सही है और कौन गलत। मुद्दा यह है कि क्या हम अपनी आस्थाओं को इंसानियत और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बना सकते...